Pandemic In Details
Endemic, Epidemic and Pandemic
Endemic (स्थानिक) , Epidemic (महामारी) और Pandemic (सर्वव्यापी महामारी) तीनो ही बीमारियां होती है इनको इनके क्षेत्रफल के हिसाब से अलग अलग नाम दिया गया है।
What is Desease?
डीजीज को ही रोग कहा जाता है ये एक विशेष असामान्य स्थिति है जो जीव के सभी भागों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है और वो भी बिना किसी बाहरी चोट या एक्सीडेंट के।
रोग के फैलने के कई कारण हो सकते है ये इंसानो द्वारा खांसी या छींकने से या जैसा की अभी हालही में कोरोना फैलता था छूने से, या फिर जानवरों द्वारा जैसे चूहों से, मच्छरों से, कुत्तों से, ये निर्जीव चीजों से भी फैलता है जैसे खाने में तथा पीने के पानी में, और भी कई तरीकों से रोग फैल सकते है।
Endemic Desease क्या होते है
अगर किसी एक एरिया कोई भी बीमारी का बोहोत अधिक प्रभाव है उसे एंडेमिक डिजीज कहते है एंडेमिक डिजीज स्थायी (parmanent) रहती है, जैसे मलेरिया वैसे तो पूरी दुनिया में ही है लेकिन इसका अधिक मात्रा में प्रभाव अफ्रीका के कुछ हिस्सों में पड़ता है बाकी जगहों पर बोहोत काम या नाम मात्र ही है, इसीलिए मलेरिया को अफ्रीका का एंडेमिक डिजीज कहा जाता है।
ऐसे ही चिकनपॉक्स जिसे आमतौर पर माता निकल गई बोला जाता है जिसमे शरीर के हिस्सो तथा चेहरे पर फुंसियां हो जाती है ये आमतौर पर बचपन में या नवयुवकों को ही होता है इसलिए इसे नवयुवकों का एंडेमिक डिजीज कह सकते है।
Types of Endemic desease
एंडमिक डिजीज के तीन प्रकार होते है होलो एंडेमिक, हाइपर एंडेमिक और हाइपो एंडेमिक।
Holoendemic
Hyperendemic
इस प्रकार के रोग सभी एज ग्रुप के लोगो को होते है तथा लगातार बोहोत ही अधिक मात्रा में होते है तथा किसी विशेष जगह के लोगो पर इसका असर होता है।
Hypoendemic
इस प्रकार के रोग सिर्फ इनको ही होते है जिनकी इम्यूनिटी काम होती है जिसे आसानी से खान पान में सुधार करके बचा जा सकता है।
Epidemic Desease क्या होते है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा बताया गया है की महामारी क्षेत्रीय बीमारी का प्रकोप है जो अचानक से बोहोत बड़ी मात्रा में फैलती है को नाही किसी एक क्षेत्र में बल्कि वो उसकी मात्रा लगातार बढ़ती चली जायेगी। इस प्रकार की महामारी पंद्रह दिन या उससे भी कम समय में बोहोत तेजी से फैलती है। जैसे कोरॉना वायरस सुरुआती समय में एंपेडेमिक डिजीज ही था जब तक की वायरस सिर्फ चाइना में हि फैला था जब वो वायरस पूरी दुनिया में फैलने लगा तब W.H.O. ने उसे पेंडेमिक घोषित नही किया था।
आंधी-तूफान, बाढ़, भूकंप आदि भी एंपेंडेमिक डिजीज में ही आता है।
एपेंडेमिक जीका वायरस, चिकनगुनिया, डेंगू वायरस ये सभी भारत के एपेंडेमिक डिजीज है, जिसमे की भारत के कुछ हिस्से इन बीमारियों से प्रभावित हुए थे।
Pandemic disease क्या होता है?
अगर कोई डिजीज पूरी दुनिया के लोगो को प्रभावित होती है तथा बोहोत बड़े स्तर पर मौतें होती है या जो भी एपेंडेनिक से बड़ी डिजीज होती है उसे पैंडेमिक डिजीज कहा जाता है।
W.H.O. के अनुसार कोई नया वायरस या वैक्टेरिया जो की दुनिया भर में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति द्वारा फैलता है उसे पैंडेमिक डिजीज कहते है।
HISTORY OF PANDEMIC DISEASES पैंडेमिक डिजीज का इतिहास
इतिहास में स्मॉल पॉक्स, ट्यूबर क्लोसिस और द ब्लैक डेथ सहित कई महामारियां हुई हैं, जिसने 1350 में 75 मिलियन से अधिक लोगों की जान ले ली थी।
स्पेनिश फ्लू H1N1 वायरस
स्मॉलपॉक्स 1959
1968 इन्फ्लूएंजा A (H3N2) वायरस
2019 कोरोना वायरस (COVID 19)
History of Pandemic / Epidemics in India
जब बात सिर्फ भारत की हो रही है तो इसे हम एक पैंडमिक न बोलके सिर्फ एपिडेमिक ही बोलते है, जैसा की हम जानते है पैंडेमिक और एपिडेमिक दोनो का हिंदी में मतलब महामारी ही होता है सिर्फ स्तर का अंतर होता ही अगर पूरी दुनिया के स्तर पर बात हो तो पैंडेमिक कहा जाता गई तथा सिर्फ एक देश या क्षेत्र की बात हो तो एपेंडेमिक कहा जाता है।
इतिहास में इंडिया (भारत) में बोहोत सी महामारी फैली है जोकि हालही में हुए कोरोना महामारी से भी बड़ी है। आगे हम बात करेंगे मॉडर्न एज के भारत में हुए पैंडेमिक के बारे में जोकि सन 1900 के बाद की महामारी हैं।
Encephalitis Lethargica
एन्सेफलाइटिस लेथार्जिका नामक बीमारी एक एपिडेमिक्स डिजीज है जो सन 1915 से 1926 तक पूरी दुनिया में फैली, इस बीमारी में इंसान मुरझाया हुआ या सुस्त हो जाता है, नींद में रहता है और दूसरे के भावनाओ की कोई कद्र नही होती। आसान भाषा में कहा जाए तो इंसान को सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है।
ये बीमारी 1919 में यू एस, सेंट्रल अमेरिका, कनाडा,इंडिया जैसे देशों में फैली। इस बीमारी को ENCEPHALITIS A और ECONOMO DISEASE भी बोला जाता है, इस वायरस को ACUTE CONTIGUOUS DISEASE भी कहा जाता था क्युकी ये एक इंसान से दूसरे से इंसान तक फैल रही थी, ये वायरस इंसान के Central Nervous System (CNS) पर अटैक करता था। इस बीमारी के बारे में एक डॉक्टर जिनका नाम J.E. DHUNJIBHOY था उन्होंने ने सालो तक रिसर्च की और जुलाई 1929 में अपनी रिपोर्ट पब्लिश की।
कई रिसर्च में ऐसा पाया जाता है की ये वायरस 1917 में Vienna में डिस्कवर हुआ था और 1917 में ही यूरोप के कई हिस्सों में फैलना शुरू हो गया था, यूरोप में एक महामारी के रूप में ये वायरस 1917 से 1926 तक फैला।
भारत में भी ये बीमारी कुछ जगहों पर फैल रही थी ये बीमारी खांसी छींक या और भी अन्य माध्यम से फैल रहीं थी। कहा जाता है की इस बीमारी के कारण दुनिया भर में 1.5 मिलियन (More than 7.5% of World Population) से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जो की परसेंटेज के हिसाब से कोविड 19 से कई गुना ज्यादा है।
SPANISH FLU
अभी दुनिया एन्सेफलाइटिस लेथार्जिका नामक बीमारी से बाहर भी नही निकली थी की एक और बोहोत ही खतरनाक वायरस ने आ गया जिसका नाम था स्पेनिश फ्लू, कहा जाता है की स्पेनिश फ्लू की शुरुआत 1918 में ही हो गई थी जोकि 1920 तक चली। इस भयंकर फ्लू के कारण दुनिया में मानो मौत का तांडव सा हो रहा हो।
भारत INDIA
इस वायरस का एक्सपेंशन वर्ल्ड वॉर वन के समय बोहोत अधिक मात्रा में हुआ। भारत में इस वायरस के आने का प्रमुख कारण भारत की ओर से युद्ध में गए सैनिक ही थे। आंकड़े बताते है की दुनिया भर में इस फ्लू से 50 मिलियन लोगों की जान गई थी, केवल भारत में ही करीब 18 मिलियन लोग स्पेनिश फ्लू की वजह से मार गए थे।
स्पेनिश फ्लू के कारण भारत की नदियों में लाशे ही लाशे दिखाई देती थी, उनको जलाने के लिए लकड़ियां तक नही मिल रही थी, लाखों लोगों की तरह महात्मा गांधी भी इस जानलेवा बीमारी स्पेनिश फ्लू के शीकार हो गए थे, अगर समय रहते गांधी जी इस बीमारी की चपेट से बाहर न आते तो भारत के आजादी की कहानी भी कुछ और होती, गांधी की पुत्रवधु गुलाब और पोते शान्ति की मृत्यु भी इसी बीमारी से हुई थी। भारत में इस बीमारी की शुरुआत 29 मई 1918 को हुई थी जब पहले विश्व युद्ध के मोर्चे से लौट रहे भारतीय सैनिकों का जहाज बंबई बंदरगाह पर आकर लगा था।
शुरुआत में सभी देशों ने इस वायरस के बारे में दुनिया से छिपा के रखा था क्युकी वो नही चाहते थे की वायरस के डर से मोर्चे पर गए सैनिकों का मनोबल कमजोर हो और वो मोर्चे से वापस आ जाए, पर इस बीमारी के भवावह रूप को देखते हुए स्पेन ने सबसे पहली इस बीमारी के अस्तित्व को स्वीकारा तथा दुनिया को इस बीमारी के बारे में बताया जिसके कारण इस बीमारी को स्पेनिश फ्लू का नाम दे दिया गया
इसके बाद सभी देशों ने अपने अपने नेशनल संचार के माध्यमों से अपनी देश की जनता को इस बीमारी से बचने के बारे में उपाय बताने लगे।
PLAGUE IN INDIA (1815 - NOW)
उनिस्सवी सताब्दी में प्लेग भारत में काफी तेजी से फैलने लगा, भारत में प्लेग की शुरुआत 1815 के आसपास गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ में फैला 1816 में यह हैदराबाद और अहमदाबाद में पहुंच गया हर साल सैंकड़ों मौत होने लगी जिसके बाद सन 1853 में एक जांच कमीशन नियुक्त हुआ, प्लेग महामारी का चक्र चलता था यह कुछ सालो बाद फिर से सुरु हो जाता था, और सैकड़ों लोगों की जान चली जाती थी। सन 1876 में एक बार और फैला 1898 में प्लेग फिर फैला और लगातार बीस सालो तक इससे जाने जाती रही, प्लेग से सबसे ज्यादा प्रभावित बंगाल और मुंबई थे।
सितंबर 1994 में गुजरात के सूरत में एक आदमी की मौत प्लेग से होती है फिर ये आंकड़ा बढ़ा और 10 लोगो की ओर मौत हो जाती है सात दिन के अंदर सूरत की लगभग पच्चीस प्रतिशत आबादी शहर छोड़कर चली गई। आजादी के बाद यह देश का सबसे बड़ा पलायन था, यहां यूपी और बिहार के लोग रह रहे थे जो अपने गाओ की ओर लौट गए और उनके साथ उनके गांव पहुंचा प्लेग, गाओ भागकर लौटना इतना भवावह था की की गाओ के गाओ प्लेग के कारण सांफ हो गए। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में एक हजार आठ सौ करोड़ का नुकसान हुआ, एयर इंडिया के प्लेन को प्लेग प्लेन कहा गया। ब्रिटिश अखबारों में इसे मध्यकालीन श्राप कहा गया।
मुख्य कारण
प्लेग चूहों के शरीर पर पलने वाले किटाडुओ के माध्यम से फैलता है। ये कीटाणु बोहोत ही संक्रामक होते है, इन्हे वैज्ञानिकों ने Yersinia pestis नाम दिया था। चूहों के शरीर पर मिलने वाले ये कीटाणु दो तरीके के होते है निमोनिक और बियोबोनिक, इन्ही वैक्टेरियाओ की वजह से प्लेग फैलता है। आज भी प्लेग की वजह से सैकड़ों मौतें हो जाती है।
प्लेग से बचाव
आज भी प्लेग से सैकड़ों लोग प्रभावित हो जाते है इससे बचने का सिर्फ एक ही उपाय है की इसका टिका लगवाया जाए सरकार तथा डॉक्टर सलाह देते है की बारह से सोलह साल के बच्चो को प्लेग का टीका लगवाया जाए तथा एंटीबायोटिक दवाएं की एक खुराक दी जाती है।
VIBRIO CHOLERA PANDEMIC (1817-NOW)
विब्रियो कोलेरा एक बैक्टीरिया है जिसने सात तरीके के कोलेरा पेंडेमिक किए 1817 से अब तक।
कोलेरा जिसे हैजा भी कहते है, इसके सुरुआति छह चरण 1816 से 1923 के बीच दुनिया के कई हिस्सों में दिखे।
1940 के दशक में दुनिया में अस्थिरता थी और भारत भी ब्रिटिश सरकार से आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था तभी 1941 में हैजा भारत के गाओ में बड़े स्तर पर फैल गया शुरू में लोग समझ न सके, जिससे भारत में बोहोत बड़ी संख्या में लोगो की मृत्यु हुई, चूंकि उस समय भारत में कई तरह के आंदोलन भी चलाए जा रहे थे शायद इसी कारण इसका कोई स्पष्ट डाटा उपलब्ध नहीं है की कितनी मौतें हुई।
सातवी बार यह बीमारी 1961 से 1975 तक फैली जिसके मरीज आज भी देश और दुनिया के कई हिस्सों में पाए जाती है। सातवी बार यह बीमारी इंडोनेशिया के एक सहर मक्काशर से शुरू हुआ, 1963 में बंगलादेश में भी इसको पाया गया। भारत में ये वायरस 1964 में बंगाल में आया, इसके बाद साउथ एशिया से ये वायरस मिडिल ईस्ट में फैला, फिर नॉर्थ अफ्रीका में फैला फिर यूरोप में भी फैल गया, 1970 के दशक तक ये जापान और पेसिफिक एशिया तक फैल गया। और कुछ शोध यह भी बताते है की 1991 आते आते यह वायरस लेटिन अमेरिका तक पहुंच गया था जिसकी वजह से दस हजार लोग सिर्फ पेरू में मारे गए थे। इस पेंडेमिक से सिर्फ 1961 से 1995 तक पांच लाख बीस हजार लोग मरे गए थे। 1990 के दशक में इस बीमारी के इलाज के लिए टीका लगाना चालू हुआ जिससे इसपर काबू पाया जा सका।
हैजा बायब्रियो कोलेरी नाम के वैक्टेरिया से फैलता है यह वैक्टेरिया खराब हो चुके खाने और गंदे पानी में होता है, इसमें दस्त और उल्टियां होती है जिससे मरीज के शरीर का सारा पानी बाहर आ जाता है, इसका सीधा असर ब्लड प्रेसर पर पड़ता है ब्लड प्रेशर लॉ हो जाता है और समय पर इलाज न होने के कारण मरीज की मौत। भी हो सकती है।
अब भी दुनिया में हैजा की चपेट में हर साल तीस से पचास लाख लोग आते है जिनमे से करीब एक से डेढ़ लाख लोगो की मौत भी हो जाती है।
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